Tuesday 14 April 2020

मैं चिल्लाऊंगा ! - Poem

Photo : Roohul Amin ©


मैं चिल्लाऊंगा !

जब ख़त्म हो जाएंगी ये पाबंदियां
किसी खेत में अहले सुबह को मैं
नींद से सो रहे होंगे सब, तब जाऊंगा
हलक को फाड़ कर मैं चिल्लाऊंगा।

चिल्लाऊंगा की सुन लें सब चींखें मेरी
कि चरिंदे भी सुनें और वो परिंदे भी
जिनको छत में लटकी हुई, लोहे की
कड़ी में पिंजड़े भर भर के टांगा था

दाना भी दिया था पानी भी थी प्याले में
फल सूखे मेवे थे कटी हुई थी सब्ज़ी भी
दो फूल की नकली डाली और थे पत्ते भी
पिंजड़े में बहुत सलीके से सजाया था

चींखें निकले मेरी रौन्धे गले से
कहानी अपनी क़ैद की सुनाऊंगा
उनपे भी हुए ज़ुल्म को दोहराऊंगा
हलक को फाड़ के मैं चिल्लाऊंगा

कि घर में रहना आज़ादी नहीं
खाना खाना आज़ादी नहीं
कविताएं या गाने सुनना भर
आज़ादी नहीं, आज़ादी नहीं

उनकी ही आहें लगी हमको
जो ये सब हमपे गुज़री है
निकलने को तो चाहें हम
पर हमपे न हमारी मर्ज़ी है

माफ़ करो अब माफ़ करो
ये ग़लती के गीत ही गाऊंगा
कुछ मिल न सके तो रोऊंगा
मैं हलक फाड़ के चिल्लाऊंगा।।
~ रूहुल अमीन

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