Photo : © Roohul Amin |
कोई तो उठे
डंडे गोले और मशीनी हथियार
प्रयोग में जब सरेआम हुए हों,
निकल के ज्वाला तेज़ तर्रार
विरोध में दो से चार हुए हों।
कोई तो उठे चौड़ी छाती से
ठुकराए सब व्यापार लहू का,
जन की पीड़ा हथियार बना के
शब्दों की तरंग खुले में लहराए।
जंगी हथियार मिट्टी में मिला
ज्ञान की चादर उसपे फैलाए,
भय से काँपे जो तानाशाह
संध्या सूर्योदय ऐसा ही बनाए।
पीड़ा न रहे न मेल हो कम
अचरज में रहो न तुम या हम,
भरी दोपहरी हो या रात आधी
निडर भवन से निकलें हम।
स्याही काली या नीली लाल
गणित विज्ञान भाषा भी पढ़ाए,
कोई तो उठे चौड़ी छाती से
इतिहास लिखे इतिहास बनाए।
© रूहुल अमीन