Friday 9 February 2018

रजनीकांत और कमल हासन की राजनीति में एंट्री

रजनीकांत और कमल हासन तमिल फिल्मों के सुपरस्टार माने जाते हैं। दोनों को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। राजनीति में अगर नेता बहुचर्चित हो तो चुनाव के समय प्रचार प्रसार करने में समय और पैसे कम लगते हैं।
रजनीकांत और कमल हासन सकारात्मक अभिनय के लिए जाने जाते हैं। जनता जो फ़िल्मों में कलाकारों का चित्रण कर लेती है उसे असल जीवन में भी सच मान लेती है।
शायद रजनीकांत एवं कमल हासन किसी बुजुर्ग की तरह अपना बचा जीवन लोगों की सेवा में लगाना चाहते हैं।
चूँकि सकारात्मक छवी वाले ये कलाकार लोगों के दिलों पर राज करते हैं, इसलिए इन्हें कम आंकना सही नहीं होगा।
तमिल नाडू के लोगों की समस्या भी उत्तर भारत के लोगों जैसी ही होगी। इन दोनों का राजनीति में आना वहां के लोगों के लिए आशा की एक नई किरण साबित हो सकती है।

पद्मावत !

फ़िल्म पद्मावत का विरोध उसके शूटिंग के समय से ही हो रहा था। विरोध उस समय से हो रहा था जब फ़िल्म की कहानी किसी को पता भी नहीं था।
सेंसर बोर्ड को उसको कई कट के साथ हरी झंडी देना, एवं वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा ये स्वीकृति करना कि फ़िल्म में विरोध जैसा कुछ भी नहीं है, ये दर्शाता था कि फ़िल्म का विरोध राजनीतिक कारणों से हो रहा है।
फ़िल्म को ले कर राजनीतिक दलों की चुप्पी कहीं न कहीं ये बता रही थी कि ये फ़िल्म सभी पार्टियों के गले की हड्डी बन चुकी थी। जिसे न निगले बन रहा था और न ही थूके ।
इसका मुख्य कारण राजपूत समाज का फ़िल्म के प्रति विरोध था। आने वाले समय में राजस्थान में चुनाव होने वाले हैं। चुनाव के ठीक पहले राजपूत वोटरों को दुखी करना चुनाव में हार का सामना करवा सकता था।
हालांकि अब फ़िल्म सिनेमाघरों में दिखाई जा रही है और फ़िल्म के चित्रण से किसी के सम्मान को चोट नहीं पहुंच रही है।
लोगों को याद रखना चाहिए कि सिनेमाई स्वतंत्रता एक लोकतांत्रिक देश में ज़रूरी है। इसमें राजनीतिक दख़ल होना लोकतंत्र के विचारों के विरूद्ध है।