Wednesday 15 April 2020

Panchayat - पंचायत : Hindi Review

Panchayat- Photo : IMDb via TVF

पंचायत


इस से पहले की हम इस सीरीज को फ़िल्म स्वदेश समझ बैठें, इसका मुख्य किरदार 'अभिषेक' न की 'अभिसेक' हमें ये समझा देता है कि वो स्वदेश का 'मोहन भार्गव' इतनी कम सैलरी में तो नहीं ही बनना चाहता।
कहानी है ग्राम फुलेरा, पोस्ट फकौली, जिला बलिया, उत्तर प्रदेश की। पंचायत में ग्राम सेक्रेटरी की सीट खाली है। पढ़ा लिखा नौजवान सरकारी फॉर्म भरता है, सेलेक्शन हो जाती है और ज़िंदगी ला पटकती है फुलेरा में जहाँ उसका रहने का बिल्कुल भी मन नहीं।

प्रधान जी और मंजू देवी (Photo: IMDb via TVF) 

गांव में 'प्रधान जी' हैं जो असल में प्रधानपति हैं। प्रधान हैं मंजू देवी जिन्हें प्रधान रहने में कोई इंटरेस्ट नहीं। उपप्रधान के किरदार में नज़र आये हैं 'फैसल मलिक' जिन्हें हम या शायद आप भी 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' में थाना प्रभारी गोपाल सिंह के किरदार में देख चुके हैं।

प्रधान जी और उप-प्रधान (Photo: IMDb via TVF) 

'का बात कर रहे हैं!'
अभिषेक बने हैं जितेंद्र कुमार जो लौंडों के बीच जीतू भैय्या के नाम से जाने जाते हैं।
पंचायत में हर बारीक से बारीक चीज़ का ध्यान रखा गया है जो एक छोटे से गांव से रिलेट करवा सके।
मान लीजिए आप अपने मेहमान को 3 मिठाई का टुकड़ा दे रहे हैं। गांवों में 3 नहीं देते हैं किसी को। या तो 2 दीजिए या 4। 
पंचायत कहानी है हमारे गांव के भूत वाले पेड़ की। हमारे गांव में होने वाले किसी की बेटी की शादी की। लोगों के भावना को आहत होने की। महिला शशक्तिकरण की।
पंचायत नें उन सभी ज़रूरी मुद्दों को बड़ी ही समझदारी और एंटरटेन कर के उठाया है जिनका उठाया जाना जरूरी है। चाहे वो एक पढ़े लिखे नौजवान का 'दहेज़' न लेना हो, 2 से अधिक बच्चे न पैदा करना हो, या समाज में प्रधानपति जैसे किसी पद को ख़ारिज करना हो।

सेक्रेटरी जी और सहायक विकाश (Photo: IMDb via TVF) 

पंचायत सहायक 'विकाश' को देख कर शायद ही कोई कहे कि ये कोई एक्टर है। एक्टिंग में सफाई इतनी की बस आप रिलेट कर जाएं कैरेक्टर से। प्रधान जी में एक बाप नज़र आता है, एक समझदार व्यक्ति भी जो ये जनता है कि सचिव जी ग़ैर ज़िम्मेदार हो सकते हैं चोर नहीं। प्रधान जी में एक बेवक़ूफ़ भी नज़र आता है जो लोगों के चढ़ाने पे अपनी कुर्सी को खतरे में पड़ा देखे।
पंचायत एक ऐसी सिरीज़ है जिसे शायद ही आप चाहें की वो ख़त्म हो। बस देखते ही रहें।
हम बात प्रधान जी की बेटी 'रिंकी' की भी करते पर आप ही देखें तो ज़्यादा अच्छा है।

~ रूहुल अमीन

Tuesday 14 April 2020

मैं चिल्लाऊंगा ! - Poem

Photo : Roohul Amin ©


मैं चिल्लाऊंगा !

जब ख़त्म हो जाएंगी ये पाबंदियां
किसी खेत में अहले सुबह को मैं
नींद से सो रहे होंगे सब, तब जाऊंगा
हलक को फाड़ कर मैं चिल्लाऊंगा।

चिल्लाऊंगा की सुन लें सब चींखें मेरी
कि चरिंदे भी सुनें और वो परिंदे भी
जिनको छत में लटकी हुई, लोहे की
कड़ी में पिंजड़े भर भर के टांगा था

दाना भी दिया था पानी भी थी प्याले में
फल सूखे मेवे थे कटी हुई थी सब्ज़ी भी
दो फूल की नकली डाली और थे पत्ते भी
पिंजड़े में बहुत सलीके से सजाया था

चींखें निकले मेरी रौन्धे गले से
कहानी अपनी क़ैद की सुनाऊंगा
उनपे भी हुए ज़ुल्म को दोहराऊंगा
हलक को फाड़ के मैं चिल्लाऊंगा

कि घर में रहना आज़ादी नहीं
खाना खाना आज़ादी नहीं
कविताएं या गाने सुनना भर
आज़ादी नहीं, आज़ादी नहीं

उनकी ही आहें लगी हमको
जो ये सब हमपे गुज़री है
निकलने को तो चाहें हम
पर हमपे न हमारी मर्ज़ी है

माफ़ करो अब माफ़ करो
ये ग़लती के गीत ही गाऊंगा
कुछ मिल न सके तो रोऊंगा
मैं हलक फाड़ के चिल्लाऊंगा।।
~ रूहुल अमीन

Sunday 22 March 2020

कोई तो उठे - हिंदी कविता

Photo : © Roohul Amin


कोई तो उठे

डंडे गोले और मशीनी हथियार
प्रयोग में जब सरेआम हुए हों,
निकल के ज्वाला तेज़ तर्रार
विरोध में दो से चार हुए हों।

कोई तो उठे चौड़ी छाती से
ठुकराए सब व्यापार लहू का,
जन की पीड़ा हथियार बना के
शब्दों की तरंग खुले में लहराए।

जंगी हथियार मिट्टी में मिला
ज्ञान की चादर उसपे फैलाए,
भय से काँपे जो तानाशाह
संध्या सूर्योदय ऐसा ही बनाए।

पीड़ा न रहे न मेल हो कम
अचरज में रहो न तुम या हम,
भरी दोपहरी हो या रात आधी
निडर भवन से निकलें हम।

स्याही काली या नीली लाल
गणित विज्ञान भाषा भी पढ़ाए,
कोई तो उठे चौड़ी छाती से
इतिहास लिखे इतिहास बनाए।

© रूहुल अमीन

Saturday 26 May 2018

मोहब्बत है चाय


जानते हो मोहब्बत क्या है?
दूध का पतीले में चढ़ कर धीमी आंच पर पकना।
चायपत्ती के दानों का घुलना और रंग बिखेरना।
चींटियों की मुहब्बत शक्कर का चाय में मिलना।
चाय के बुलबुलों का हदें पार कर के बाहर आना और आंच धीमी होने पर अपने ज़द में फिर चले जाना।
अदरक की गांठों का सुलझना और इलाईची के दानों का कूटा जाना।
मोहब्बत है शीशे के ग्लासों में से चाय का झलकना।
मोहब्बत है अपनी खुशबू से हर मौसम के समा को खुशगवार बनाना।
मोहब्बत है चाय की चुस्की लेना।
मोहब्बत है चाय का गरम होना।


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Friday 9 February 2018

रजनीकांत और कमल हासन की राजनीति में एंट्री

रजनीकांत और कमल हासन तमिल फिल्मों के सुपरस्टार माने जाते हैं। दोनों को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। राजनीति में अगर नेता बहुचर्चित हो तो चुनाव के समय प्रचार प्रसार करने में समय और पैसे कम लगते हैं।
रजनीकांत और कमल हासन सकारात्मक अभिनय के लिए जाने जाते हैं। जनता जो फ़िल्मों में कलाकारों का चित्रण कर लेती है उसे असल जीवन में भी सच मान लेती है।
शायद रजनीकांत एवं कमल हासन किसी बुजुर्ग की तरह अपना बचा जीवन लोगों की सेवा में लगाना चाहते हैं।
चूँकि सकारात्मक छवी वाले ये कलाकार लोगों के दिलों पर राज करते हैं, इसलिए इन्हें कम आंकना सही नहीं होगा।
तमिल नाडू के लोगों की समस्या भी उत्तर भारत के लोगों जैसी ही होगी। इन दोनों का राजनीति में आना वहां के लोगों के लिए आशा की एक नई किरण साबित हो सकती है।

पद्मावत !

फ़िल्म पद्मावत का विरोध उसके शूटिंग के समय से ही हो रहा था। विरोध उस समय से हो रहा था जब फ़िल्म की कहानी किसी को पता भी नहीं था।
सेंसर बोर्ड को उसको कई कट के साथ हरी झंडी देना, एवं वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा ये स्वीकृति करना कि फ़िल्म में विरोध जैसा कुछ भी नहीं है, ये दर्शाता था कि फ़िल्म का विरोध राजनीतिक कारणों से हो रहा है।
फ़िल्म को ले कर राजनीतिक दलों की चुप्पी कहीं न कहीं ये बता रही थी कि ये फ़िल्म सभी पार्टियों के गले की हड्डी बन चुकी थी। जिसे न निगले बन रहा था और न ही थूके ।
इसका मुख्य कारण राजपूत समाज का फ़िल्म के प्रति विरोध था। आने वाले समय में राजस्थान में चुनाव होने वाले हैं। चुनाव के ठीक पहले राजपूत वोटरों को दुखी करना चुनाव में हार का सामना करवा सकता था।
हालांकि अब फ़िल्म सिनेमाघरों में दिखाई जा रही है और फ़िल्म के चित्रण से किसी के सम्मान को चोट नहीं पहुंच रही है।
लोगों को याद रखना चाहिए कि सिनेमाई स्वतंत्रता एक लोकतांत्रिक देश में ज़रूरी है। इसमें राजनीतिक दख़ल होना लोकतंत्र के विचारों के विरूद्ध है।

Wednesday 1 March 2017

क्या शहाबुद्दीन सिर्फ मुसलमानों के नेता हैं ?

सिवान से तिहाड़
Photo Source : Facebook


जो सिवान शहर से है उससे शहाबुद्दीन का नाम दसकों से जुड़ा है और हमेशा जुड़ा रहेगा.
जब बात शहाबुद्दीन की होती है तो याद कॉम्रेड चंद्रशेखर आते हैं जिनको शहर के जे.पी. चौक पर गोलियों से छल्ली किया गया था.
आरोप उनपे आया लेकिन जाँच में कुछ नहीं निकला.
शहाबुद्दीन का नाम जब भी कोई नेता खुले मंच पे लेता है तो उसके सियासी फायदे होते हैं.

अमित शाह जब बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार कर रहे थे तब उन्होंने ये कहा था की भाजपा के हारने पर जेल में बैठे शहाबुद्दीन ख़ुश होंगे और पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे.
इस दिए गए भाषण को भी बिहार में भाजपा के हार के लिए दोषी समझा गया.
बीते हफ्ते शहाबुद्दीन के बेल को रद्द कर के वापस जेल भेज दिया गया.
नि:संदेह वो एक अपराधी हैं जिसे कानून नें करीब 11 सालों से जेल में रखा हुआ है. पर प्रशासन नें शहर के मौजूदा हालात पे रिपोर्ट तैय्यार करने से पहले क्रॉस चेक क्यों नहीं किया जिसमें ये कहा गया की उनके आने से शहर का माहौल बदल गया है ??
क्या मुख्यमंत्री के दबाव में वो रिपोर्ट तैय्यार हुआ जिससे वो 2000 में गिरे अपने सरकार का बदला ले सकें जिसका जिम्मेदार वो शहाबुद्दीन को मानते हैं ??
जुनूनी समर्थक इसे मुस्लिम होने की सज़ा कह रहे हैं.
लेकिन ये इतिहास रहा है कि डॉ.शहाबुद्दीन नें कभी भी धर्म की राजनीति नहीं की. फिर इसे हिंदू या मुस्लिम से क्यों जोड़ना ??
वहीं धर्म की राजनीति कर के आज लोग कुर्सी पे काबिज़ हैं.
शहाबुद्दीन के चाहने वाले उन्हे विकास पुरुष कहते हैं. एक बार तो साँसद द्वारा खर्च की जाने वाली पूरी राशी विकास के कामों में लगा कर वो अन्य नेताओं से अलग बन चुके हैं.

शहाबुद्दीन के बेल रद्द होने के दो तीन दिनों के बाद समझौता एक्सप्रेस धमाके के मुख्य आतंकी असीमानंद को कोर्ट नें बेल दे दिया. तब समर्थक इज़ इक्वल टू करने में लग गए. देश-विदेश में कैंडल मार्च निकाला, धरना दिया पर हाँथ कुछ न आया.
जब शहाबुद्दीन बेल पर थे तब मीडिया नें सिवान में फैले डर के माहौल को उजागर किया. डीबेट हुए, पैनलिस्ट बुलाए गए लेकिन शहर में ऐसा कुछ था ही नहीं.
खौफ़ में वो डॉक्टर हो गए थे जिनके सेवा के चार्ज को उसने दसकों पहले फिक्स कर दिया था, और उसके वो विरोधी जो उसका नाम और भय दिखा कर दसकों से शासन कर रहे हैं.
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#Shahabuddin #Siwan

P.S. : This article has been posted on My Facebook Profile on 06th Oct 2016