Saturday 26 December 2015

ख़यालों की पेंटिंग

मैं पलके बिना झपकाए हुए वो चेहरा अपनी आँखों के सामने महसूस करता हूँ जो किसी पेंटिंग के सामने खड़े हो कर उसकी तारीफ किए बिना नहीं हटती.
ये लफ्ज़ नहीं कर पाएँगे उस कथन को पूरा जो की तुम्हारी यादों को नोटबुक में मुझे उतारने को मेरे मन नें कहा था. थका हूँ. ये थकान अपने ख़यालों के कैनवस पे बनाए गए उस रंगीन पेंटिंग की है जिसमें मुझे तुम्हारा ही चेहरा दिखता था. मैने उसमें हमारा रंग भर दिया है. नीला रंग. तुम्हारी आँखों की तरह. गाढ़ा नहीं पर हल्का भी नहीं . ये पेंटिंग मैं अपने ख़यालों में बने हुए तुमको ख़यालों में ही गिफ्ट करना चाहूँगा. वहाँ डर नहीं है. असल में तुम रिजेक्ट कर दोगी. मैं बेसुरा पेंटर हूँ. बेसुरा हो तो पेंटिंग का क्या कनेक्शन ? मैं गुनगुनाते हुए तुम्हारी पेंटिंग बनाता हूँ न......

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