Thursday 24 December 2015

कोसता हूँ उस टेक्नोलॉजी को...


तुम्हारे 'व्हाट्सएप्प' प्रोफाईल पे घूमना एक लफंगे जैसा एहसास कराता है मुझे.. दिन में सैकड़ों बार तुम्हारे 'प्रोफाईल पिक्चर' को गहरी साँसे ले कर देखता हूँ.. गहरी साँसे ? हाँ उन तस्वीरों को देख कर जीने का एक नया बहाना मिल जाता है मुझे.. पिछले हफ्ते ही तो तुमने अपना स्टेटस बदला था.. तुम खुद कुछ क्यों नहीं लिखती ? दूसरों का कॉपी किया हुआ पढ़ना मुझे अच्छा नहीं लगता.. तुमने अपना 'लास्ट सीन' शायद मेरे वजह से ही बंद कर रखा है.. मैं बुरा नहीं मानता कि तुम कब-कब ऑनलाईन हो.. इंटरनेट नें हमें कहाँ ला दिया है.. दूर हो कर भी पास होनें का वो एहसास मेरे दिल को कितना सुकून देता है..
ये शायद पाँचवी बार है जब तुम्हे मैने मैसेज किया है.. तुम इस बार भी कहीं गुम हो.. व्हाट्सएप्प की वो दो 'नीली लकीरें' मुझे ये बता देती हैं की तुमनें मेरा मैसेज पढ़ लिया है.. मैं कोसता हूँ उस टेक्नोलॉजी को जिससे मैं ये तो जान पाया की मेरी बातें तुम तक पहुँच चुकी हैं पर उस मजबूरी को न जान पाया जो मेरे मैसेज के रिप्लाई देने से तुम्हें रोक रही हैं..





































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